पृथ्वी के सारे धर्म यही कहते हैं कि सारी सृष्टि का एक ही रचयिता है। जिसे अनेक धर्मो ने अपने अपने नाम दिए हैं। परमेश्वर, खुदा, गाड इत्यादि। उनकी परिकल्पना में कुछ समानता एवं कुछ भिन्नता है, पृथ्वी के उस भाग की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण हो सकता है, पर आज तेज़ रफ़्तार जहाज़ों ने तो पृथ्वी तो क्या अंतरिक्ष की दूरियाँ भी कम कर दी हैं। तो फिर उनका अनुभव क्या है एवं मान्यता क्या होगी, क्या आज भी हठधर्मी हैं। अपने धर्म का पालन करना तो अति आवश्यक है परंतु बिना किसी को नुकसान पहुंचाए, बिना किसी से द्वेष के एवं बिना ईर्ष्या के। सूरज एक ही गति से चलता है प्रत्येक धर्मों के लिए, चाँद और तारे भी एक ही गति से चमकते एवं विलुप्त होते हैं। अलग अलग धर्मों के लिए अपनी गति नहीं बदलते, अगर उनके कार्यों में विवाद नहीं तो हमारे धर्मों में कैसा विवाद। मानव धर्म मानव सेवा है एवं निःस्वार्थ। How to find peace